Yeh Laal Rang....
"ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा,
मेरा गम कब तलक मेरा दिल तोड़ेगा...."
किशोर दा की आवाज में परफॉर्म करते काका का जब भी मैं यह गीत सुनता हूं शराब पीने की तलब खुद-ब-खुद मेरे अंदर जाग जाती है, पता नहीं कैसा जादू है जिस गाने में जो मैं खुद को रोक ही नहीं पाता और आज भी वही हो रहा था जो अक्सर होता था मैं अपने बड़े से घर में शराब की बोतले खाली करने में तुला हुआ था और हमेशा की तरह मेरा दोस्त शिवराज हॉलीवुड की रोकने की कोशिश कर रहा था, मैं जब भी शराब का प्याला अपने हाथ में लेता हूं तो चियर्स करने के लिए हमेशा अपने दोस्त शिवराज को बुला लिया करता हु. क्यूंकि एक वही है, जो श्रेया के जाने के बाद मुझे रास आता है, बाकी सारी दुनिया ही बेगानी सी लगती है... माँ -बाप तो कुछ साल पहले ही गुजर चुके थे... एक श्रेया ही थी, जो इस मन के रेगिस्तान पर बारिश बनकर बरसा करती थी लेकिन उसके जाने के बाद अब ये मन फिर से बंजर रेगिस्तान हो गया था जिसकी प्यास अब शराब की बोतले बुझाया करती है..... जिसमे बखूबी मेरा मित्र शिवराज मेरा साथ दिया करता है...
"Ahhhhhhhhhh..... साला कड़वा... है "ग्लास टेबल पर रखकर शिवराज बोला..." सरकार यह गाना सीधे लेफ्ट साइड में धड़क रहे दिल में लगता है"
"संभल कर, कहीं तेरे लेफ्ट साइड में धड़क रहे दिल को चीर कर लाल रंग ना निकाल दे"
"अरे सरकार कब से इस फिराक में हूं कि इस धड़क रहे दिल को कोई हसीना मिल जाए लेकिन किस्मत ही खराब है"
"क्यों....तेरी उस फेसबुक वाली आइटम का क्या हुआ"
" मत पूछो सरकार"
"अबे बता... "दोनों के लिए एक और पेग बनाते हुए मैंने पूछा
" गया था उससे मिलने"
"तो तु मिल भी आया उससे... "बीच में रोककर मैं बोला "फिर क्यों रो रहा है"
" अरे सरकार, पूरी बात तो सुनो..." शिवराज ने गिलास उठाया और एक सांस में ही पूरा पीकर बोला..." लड़का निकली सरकार.."
"ओ तेरी.. हा हा हा"
" क्या करें सरकार.. इस गरीब के दिन ही नहीं खिलते.. 3 महीने से ना तो सैलरी मिली है और ना ही कोई लड़की"
मुझे उस रात पूरे समय शिवराज के साथ बैठकर गप्पे मारने चाहिए थे लेकिन पता नहीं उस मनहूस गाड़ी में मुझे वह पल कैसे याद आ गया जो हाल ही के कुछ दिनों पहले का था...
"चल.. पाप के घर चलते है..... "गिलास को टेबल में रखकर सिगरेट के पैकेट ढूंढते हुए मैंने कहा
"पाप का घर ?"
" Bar of SIN..."
" Bar of SIN... "शिवराज थोड़ा चौका... मेरे इस विचार से
"उस साले खुराना के लौंडे को सबक सिखाना है, उस दिन एक गेम क्या जीत गया, साला खुद को शेर और मुझे गीदड़ कहता फिर रहा है"
"अभी नहीं कभी और चलेंगे"
शिवराज जानता था कि मैं नशे में हूं, मुझमें ठीक से खड़े रहने की भी क्षमता नहीं है.. लेकिन जिसका दोस्त शिवराज हो उसे इन सब की परवाह भला क्यों हो...
" अबे चल, वरना मै अकेले जाऊंगा "
" ठीक है चलता हूं"
हम दोनों मेरे घर से Bar of SIN के लिए निकले, मैं अच्छा खासा रहीस था और इसीलिए मुझे जब भी जो करने का मूड करता मैं वह करता, कोई रोक-टोक मुझे पसंद नहीं थी. लेकिन उस दिन मुझे शिवराज की बात मान लेनी चाहिए थी लेकिन मैंने वैसा कुछ भी नहीं किया और अपनी कार से शिवराज के साथ Bar of SIN के लिए निकल पड़ा....
Bar of SIN, शहर में शराब के आदी रईसों की सबसे पसंदीदा जगहों में से एक थी, अक्सर शाम ढलते ही यहां बड़े घरों में रहने वाले लोग जमा होने लगते थे. बड़ा से बड़ा राजनीतिक, बड़ा से बड़ा समाज सेवक या फिर फिल्मी हस्तियां.. सभी का यहां जमावड़ा होता था जो दिन में कुछ और होने का ढोंग करते थे तो नहीं रात को bar of sin मे पोल पकड़कर नाचती हुई लड़कियों पर दोनों हाथों से पैसे लुटाते थे. मैं खुद भी ऐसा करता था इसलिए मुझे इतना बुरा नहीं लगता था यह... शिवराज, मेरे कॉलेज के दिनों का ठरकी दोस्त था. मुझे सिर्फ चार चीजें पसंद थी.. पहला शराब, दूसरा पैसा, तीसरी लड़की और चौथा मै खुद.... मतलब आखरी में ले देकर मेरा नंबर भी लग ही जाता था.
Bar of SIN मे बहुत गलत काम होते थे, लेकिन उनमे से एक जिसे मै गलत नहीं मानता था, वो था ताश खेलने वाली जगह पर परफॉर्म कर रहे कुछ लोकल आर्टिस्ट. बाकी पोल डांस, ड्रग्स सप्लाई ये बाहर चलते रहता था लेकिन जहा लाखों - करोडो का जुआ खेला जाता था, जहा आदमी की किस्मत ताश के कुछ पत्ते तय करते थे.. वहा शहर के लोकल आर्टिस्ट जान फूक देते थे... और एक से एक पुराने गाने उस वातावरण मे सुनाये जाते... इसलिए वहा जाने की मेरी कई मजबूरियो मे से एक मजबूरी ये भी थी... जिसे वही व्यक्ति समझ सकता है, जो या तो पुराने गानो का शौक़ीन हो या फिर मुझ जैसा शराबी... खैर, मै दोनों था...
"सरकार में एक बार फिर बोलता हूं वापस चलकर उस ठंडी सड़क वाली लड़की के पास चलकर मजे करते हैं, ये war of the bar में कुछ नहीं रखा.. "कार से बाहर आकर उसने कहां
हम दोनों bar of sin, पहुंच चुके थे और शिवराज मुझे वापस चलने के लिए फिर से बोला लेकिन मैंने उसकी बात फिर नहीं मानी और उसे जबरदस्ती घसीट कर बार के अंदर ले गया... मुझे मालूम था कि खुराना हमेशा की तरह आज कहां बैठा होगा. इसलिए मैं बार में घुसकर सीधे उसी तरफ गया... शिवराज अब थोड़ा डरने लगा था मुझे मालूम था कि मैं लाल रंग की शराब में मदहोश हूं और मुझे होश भी नहीं है, ऊपर से मैं उस तरफ जा रहा था जहां मेरा दुश्मन बैठा हुआ था...
मैने Concert के मैनेजर के पास जाकर कहा की अब से लेकर जब तक मै ना कहु... तब तक सिर्फ काका का सिर्फ वो एक गाना ही वहा बजेगा... इसके लिए मैने उसे नोट की एक गड्डी भी इनाम स्वरुप दी और फिर खुराना की तरफ बढ़ा.
खुराना इंडस्ट्रीज, शायद इस शहर में कोई ऐसा होगा जिसे यह नाम ना मालूम हो खुराना मेरा बिजनेस प्रतिद्वंदी था. और कुछ दिन पहले उसके बेटे के द्वारा ताश के पत्तों में मिली हार ने मेरे सीने में गोली दाग दी थी. मैं किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था कि मैं खुराना से हार गया. कुछ लोग जो अक्सर जले पर नमक छिड़कने में तुले होते हैं वह यह भी कहने लगे थे कि मैं हर मामले में खुराना से पीछे हूं... मैं सब समझता था, लोगों को समझता था, उनकी आदतों को समझता था. लेकिन फिर भी मैं आज वहां था.. जहां खुराना का लौंडा मेरा मतलब.... खुराना जूनियर बैठा हुआ था.
"एक गेम हो जाए.."खुराना जिस टेबल पर बैठा हुआ था वहां जाकर मैं बोला.. शिवराज अभी मेरे साथ खड़ा था
"क्यों आज फिर अपना मुंह काला करवाने का विचार है क्या...? "लाल रंग से भरी शराब का ग्लास उठाकर वह बोला.." चल बेटा, आज फिर कंगाल करके भेजूंगा"
तब तक concert वालों ने वो गीत, वो संगीत इत्र की तरह उस पुरे वातावरण मे फैला दिया था और उस इत्र रुपी मधुर, मनमोहक संगीत मे मै मदहोश होने लगा, जिसकी बाकी कमी शराब पूरी कर रही थी.
"पीने कि क़सम डाल दी, पीयूँगा किस तरह
ये ना सोचा तूने यार मैं, जीयूँगा किस तरह..
किसी का भी लिया नाम तो, आई याद, तू ही तू
ये तो प्याला शराब का, बन गया, ये लहू....
ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा....
मेरा गम कब तलक मेरा दिल तोड़ेगा....."
शिवराज ने एक बार फिर वापस चलने का इशारा किया लेकिन मैंने अपनी आंखें बड़े-बड़े कर के गुस्से से देखते हुए उसे वहीं अपने साथ बैठने के लिए कहा.. और वह बैठ गया
" चल बांट पत्ते..". खुराना को मैंने गेम शुरू करने के लिए कहां
वह ताश के पत्तों का खेल, जैसे जिंदगी का अखाड़ा बन गया था उस वक्त जहां मैं और खुराना लड़ रहे थे और जब दाँव बढ़ता गया तो बहुत से लोगों की भीड़ उस अखाड़े के चारों तरफ खड़े होकर मजा लेने लगी . लेकिन उस भीड़ में कोई ऐसा भी था जो दिल ही दिल में चाह रहा था कि मैं वह अखाड़ा छोड़कर भाग जाऊं, उस भीड़ में कोई ऐसा भी था जो यह चाह रहा था कि मैं सही सलामत रहू और यह चाहने वाला कोई और नहीं, बल्कि मेरा दोस्त, मेरा भाई... शिवराज था. जिसकी हर कही हुई बात को मैं उस वक़्त अनसुना कर रहा था.
"सरकार गेम छोड़ो और चलते हैं... "मेरा हाथ पकड़ कर शिवराज बोला
मैं... मैं अब तक एक बार हार चुका था और ताश के खेल के साथ मैंने अपना होश भी खो दिया था... सोचने समझने की कोई ताकत नहीं बची थी. ना तो उस वक़्त मुझे शिवराज दिख रहा था और ना ही वहां बैठे लोग मुझे दिख रहे थे... मुझे दिख रहा था तो सिर्फ खुराना और उसके सामने टेबल पर रखी लाल रंग की शराब...
"और माल है या खेल यही खत्म करें...". मेरा मजाक उड़ाते हुए खुराना बोला
मैं फिर आज हार गया था वहां का माहौल धुंधला धुंधला दिख रहा था... खुराना ने मेरा मज़ाक बनाया और बोला कि
"तुम जैसे भिखारियों की क्या मजाल जो हम खुराना से पंगा ले... फिर चाहे वह धंधे की बात हो या यहां ताश के पत्तों की बात हो... जैसे कुछ दिन पहले कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने मे तुझे धुल खिलाई थी.. वैसे ही आज यहाँ... तुम साले नामर्द पैदा हुए हो... तुम्हारा पूरा खानदान नपुंशक है... इसीलिए श्रेया तुझे छोड़ कर मुझसे शादी कर ली.. क्यूंकि उसे पता चला गया होगा की तु कुछ नहीं कर सकता... पर यदि ऐसी बात है तो तेरा बाप भी नपुंसक रहा होगा... फिर तु कैसे पैदा हो गया...??? अच्छा याद आया, मेरे डैड एक बार तेरे घर गये थे.. कही उन्होंने तो...????"
" बस बहुत हुआ.. हरामी . "
मैं तुरंत खड़ा हुआ और अपने जेब से रिवाल्वर निकालकर खुराना पर तान दी. कुछ देर पहले जो हंस हंस कर डींगे मार रहा था उसकी हसीं अब अचानक बंद हो चुकी थी... Bar of SIN के बाउंसर्स भी मेरी तरफ बढे कि तभी किसी ने मुझे धक्का दिया और उसके अगले ही पल खुराना मेरे हाथ से रेवोल्वर छीनने की कोशिश करने लगा... लेकिन मैंने नशे की हालत में भी खुराना को निशाना बनाकर एक के बाद एक कई गोलियां चला दी और तब तक गोलियां उसके सीने में उतारता रहा जब तक की रिवाल्वर खाली नहीं हो गई.. उसके सीने से लाल रंग निकलने लगा.. उसके बाद मुझे सिर्फ इतना याद रहा कि मुझे कई लोगों ने मारा और बेहोशी के कारण मेरी आंखें बंद हो गई...
दूसरे दिन जब मेरी आंख खुली तो मैं हॉस्पिटल में था मुझे होश में आता देख एक नर्स वहां से भाग कर बाहर गई. उसके तुरंत बाद वहां एक डॉक्टर और एक पुलिस वाला आया. डॉक्टर को तो मैं नहीं जानता था लेकिन जो पुलिस वाला डॉक्टर के साथ आया था उसे मैं अच्छी तरह से जानता था.
" मैं इनसे अकेले में बात करना चाहता हूं..." उस पुलिस वाले ने डॉक्टर से कहा
" ओके"
डॉक्टर के जाने के बाद मैं तुरंत बोल पड़ा...
"माधुरे... सुन... जितना पैसा लगेगा मैं दूंगा बस खुराना के खून का इल्जाम मेरे सर पर नहीं आना चाहिए मैं उस वक्त होश में नहीं था यार... प्लीज इस केस को देख ले..."
" खुराना जिंदा है"
" क्या..." मैं खुशी से उछलने वाला था, लेकिन अगले ही पल उसने वह कहा जिसे सुनकर मुझे ऐसा लगा जैसे कि किसी ने एक गर्म सरिया मेरे सीने के आर पार कर दिया हो....
" कल रात तूने खुराना पर नहीं है शिवराज पर गोली चलाई थी.. वह ऑन द स्पॉट मर गया..."
ये सुनते ही मेरे जिस्म के भीतर बहता लाल रंग मानो जैसे सूख गया... उस एक पल मे अब ना तो मुझे किशोर दा का वो ~ये लाल रंग वाला गीत याद आ रहा था और ना ही कांच के गिलास में कैद लाल शराब... पूरे जहन मे था तो सिर्फ मेरे दोस्त शिवराज के जिस्म का लाल रंग... जिसे मैंने खुद अपने हाथों से बहा दिया था... लेकिन फिर दिल के किसी कोने से वही आवाज आई की...
"चला जाऊँ कहीं छोड़ कर, मैं तेरा ये शहर
यहाँ तो ना अमृत मिले, पीने को, ना ज़हर
हाय, ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा....
मेरा गम. कब तलक मेरा दिल तोड़ेगा...."
Thanx For Reading......... ~Yug Purush
Yug Purush
02-Aug-2021 02:22 PM
Thank you everyone 🌹🌹🌹
Reply
राधिका माधव
29-Jul-2021 10:45 AM
नाइस..
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Aliya khan
29-Jul-2021 07:15 AM
Gjb likha h
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